हर साल हरियाणा बोर्ड HBSE 10वीं का रिजल्ट आते ही हर तरफ चर्चा शुरू हो जाती है। लेकिन 2025 का रिजल्ट कुछ अलग है। इस बार जब सब टॉपर्स, पास प्रतिशत और रिजल्ट डेट की बात कर रहे हैं, तो एक ऐसा पहलू है जो शायद अभी तक किसी ने खासतौर पर नहीं बताया – डिजिटल सुरक्षा और हर छात्र तक समान पहुंच का सवाल।

अब जब रिजल्ट पूरी तरह ऑनलाइन (bseh.org.in) आता है, तो क्या हर छात्र को इसका बराबर फायदा मिल रहा है? क्या उनके निजी डेटा की सुरक्षा हो रही है? और क्या डिजिटल दुनिया में पिछड़े इलाकों के बच्चों को भी बराबर मौका मिल रहा है? आइए, इस नए नजरिए से इस बार के HBSE 10वीं रिजल्ट 2025 को समझते हैं।
डिजिटल सुरक्षा: क्या आपका डेटा सच में सुरक्षित है?
अब जब HBSE ने रिजल्ट देखने का पूरा प्रोसेस ऑनलाइन कर दिया है, तो रोल नंबर और जन्मतिथि डालते ही रिजल्ट स्क्रीन पर आ जाता है। ये तो बहुत अच्छा है, लेकिन इसके साथ एक नया खतरा भी जुड़ा है – छात्रों का निजी डेटा सुरक्षित है या नहीं?
कुछ छात्रों और अभिभावकों ने बताया कि रिजल्ट आने के बाद उन्हें अनजाने नंबरों से फोन और मैसेज आने लगे हैं, जिसमें एडमिशन, कोचिंग या स्कॉलरशिप के ऑफर होते हैं। इसका मतलब है कि कहीं न कहीं उनका डेटा लीक हो रहा है। कुछ वेबसाइट्स और थर्ड पार्टी पोर्टल्स भी छात्रों का डेटा इकट्ठा कर लेते हैं, जो कि एक बड़ा प्राइवेसी रिस्क है।
HBSE की वेबसाइट पर प्राइवेसी पॉलिसी जरूर है, लेकिन असल में ये कितना लागू हो रही है, ये सवाल अभी बना हुआ है। बोर्ड को चाहिए कि वो डेटा सिक्योरिटी के लिए और ज्यादा पारदर्शी और कड़े कदम उठाए, ताकि छात्रों का भरोसा बना रहे।
जानकारी के लिए:
HBSE आधिकारिक वेबसाइट
डिजिटल डिवाइड: क्या हर छात्र को बराबर मौका मिल रहा है?
ऑनलाइन रिजल्ट देखने का सबसे बड़ा चैलेंज है डिजिटल डिवाइड यानी इंटरनेट और स्मार्टफोन की कमी। हरियाणा के कई गांवों में अभी भी इंटरनेट कनेक्शन कमजोर है या स्मार्टफोन नहीं है। ऐसे में, जो छात्र शहरी इलाकों में हैं, उन्हें रिजल्ट तुरंत मिल जाता है, जबकि ग्रामीण छात्र साइबर कैफे या स्कूल जाकर रिजल्ट देख पाते हैं।
HBSE ने DigiLocker के जरिए डिजिटल मार्कशीट देने की सुविधा शुरू की है, लेकिन इसका फायदा अभी तक ज्यादा शहरी छात्रों को ही हो रहा है। कई अभिभावक और छात्र इस डिजिटल सिस्टम से अनजान हैं। बोर्ड ने जागरूकता अभियान शुरू किए हैं, लेकिन ये अभियान ग्रामीण इलाकों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाए हैं।
इस डिजिटल असमानता की वजह से कई छात्र रिजल्ट के बाद आगे की पढ़ाई या एडमिशन के लिए समय पर निर्णय नहीं ले पाते। इसलिए यह जरूरी है कि डिजिटल शिक्षा और सुविधा हर छात्र तक पहुंचे।
रिजल्ट का मानसिक प्रभाव: डेटा लीक और देरी से बढ़ता तनाव
रिजल्ट ऑनलाइन आते ही छात्र और उनके परिवारों के लिए खुशी या चिंता का दौर शुरू हो जाता है। लेकिन अगर डेटा लीक हो जाए या रिजल्ट देखने में देरी हो, तो ये तनाव और बढ़ जाता है।
इस बार HBSE ने रिजल्ट के साथ ही काउंसलिंग हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है, ताकि जरूरत पड़ने पर छात्र और अभिभावक तुरंत मदद ले सकें। लेकिन ग्रामीण इलाकों में लोग अभी भी इस हेल्पलाइन का इस्तेमाल करने में हिचकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा या उनकी प्राइवेसी खतरे में होगी।
इसलिए बोर्ड को चाहिए कि वह स्थानीय भाषाओं में जागरूकता बढ़ाए और छात्रों का भरोसा जीतने के लिए ठोस कदम उठाए।
मेरी नजर में HBSE का डिजिटल रिजल्ट सिस्टम एक बड़ा कदम है, लेकिन जब तक डेटा प्राइवेसी और डिजिटल डिवाइड को ठीक से नहीं संभाला जाएगा, तब तक ये हर छात्र के लिए पूरी तरह फायदेमंद नहीं हो सकता।
बोर्ड को चाहिए कि वह छात्रों के डेटा की सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाए और ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दे। आखिरकार, रिजल्ट का असली मतलब सिर्फ मार्क्स नहीं, बल्कि हर छात्र को बराबर अवसर देना भी है।
सोचिए, अगर हर छात्र को डिजिटल दुनिया में भी बराबर मौका मिले और उसका डेटा पूरी तरह सुरक्षित रहे, तो शिक्षा का असली बदलाव होगा।
स्रोत:
- HBSE Official Website
- DigiLocker
- साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के इंटरव्यू और रिपोर्ट्स (2024-25)
- स्थानीय छात्र और अभिभावक प्रतिक्रिया (हरियाणा, 2025)